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Geeta 4
भगवद गीता में ग़ुरूर या घमंड को “अहंकार” कहा गया है, और इसे अज्ञानता का परिणाम बताया गया है। घमंड में जीने वाला व्यक्ति सच्चाई और धर्म के मार्ग से भटक जाता है। भगवान कृष्ण ने स्पष्ट रूप से कहा है कि अहंकार व्यक्ति को पतन की ओर ले जाता है।
गीता का यह श्लोक इस संदर्भ में सटीक बैठता है:
अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः।
माम आत्मपरदेहेषु प्रद्विषन्तोऽभ्यसूयकाः॥
(भगवद गीता 16.18)
अर्थ:
जो अहंकार, बल, दंभ, वासना और क्रोध को अपनाते हैं और दूसरों के प्रति द्वेष रखते हैं, वे मेरे (भगवान के) स्वरूप को नहीं पहचानते और धर्म के मार्ग से दूर हो जाते हैं।
भावार्थ:
जो व्यक्ति घमंड में जीता है, वह अपने भीतर के सत्य और आत्मज्ञान को खो देता है।
उसका घमंड उसे मोह, अज्ञान और माया के जाल में फँसा देता है।
ऐसा व्यक्ति अपने कर्मों से न केवल खुद का पतन करता है, बल्कि दूसरों को भी दुख पहुँचाता है।
गीता यह सिखाती है कि हमें अहंकार को त्यागकर विनम्रता, धर्म और सत्य के मार्ग पर चलना चाहिए। घमंड से केवल विनाश होता है, और विनम्रता से प्रगति।
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आप जो महसूस कर रहे हैं, वो एक ऐसी स्थिति है जहां आपको ऐसा लगता है कि लोग अपने स्वार्थ के कारण आपको परेशान करने या नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। उनके ग़लत व्यवहार और अहंकार के चलते, आपको ऐसा लग सकता है कि आप असहाय हैं क्योंकि आपके पास वो शक्ति या साधन नहीं है जिससे आप उनका विरोध कर सकें।
भगवद गीता में ऐसी स्थितियों के लिए महत्वपूर्ण शिक्षाएं दी गई हैं:
1. धर्म और सत्य की ताकत
गीता हमें सिखाती है कि चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों, हमेशा धर्म (सही मार्ग) और सत्य का पालन करना चाहिए। असत्य और अहंकार शुरू में शक्तिशाली लग सकते हैं, लेकिन अंत में सत्य और धर्म की ही जीत होती है।
श्लोक:
“धर्मो रक्षति रक्षितः”
(जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है।)
आपको धैर्य और संयम रखना चाहिए और यह विश्वास रखना चाहिए कि समय के साथ अन्याय और ग़लत व्यवहार का अंत होगा।
2. अपने कर्म पर ध्यान केंद्रित करें
गीता का एक प्रमुख श्लोक है:
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।”
(आपका अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फल पर नहीं।)
इसका अर्थ है कि आपको अपने कार्यों और लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। जो लोग आपको चिढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं या ग़लत व्यवहार कर रहे हैं, उनके प्रति क्रोध या बदले की भावना से प्रभावित होने की बजाय अपने कार्य और लक्ष्य को सर्वोपरि मानें।
3. अहंकार को नकारें
गीता में अहंकार को सबसे बड़ा शत्रु माना गया है। जो लोग अहंकार में डूबे होते हैं, वे दूसरों को चोट पहुंचाने या दबाने की कोशिश करते हैं। लेकिन गीता यह भी सिखाती है कि अहंकार का अंत निश्चित है।
श्लोक:
“असत्यं अप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम्।”
(जो लोग असत्य और अहंकार में डूबे होते हैं, उनका जीवन अस्थिर और दुःख से भरा होता है।)
उनकी हरकतों को नज़रअंदाज करें और अपने आप को उनकी नकारात्मकता से दूर रखें।
4. असहाय महसूस न करें
अगर आपको लगता है कि आपके पास शक्ति नहीं है, तो याद रखें कि गीता सिखाती है कि असली शक्ति आत्मविश्वास, सत्य, और ईश्वर में विश्वास से आती है।
श्लोक:
“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानम् अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।”
(जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ़ता है, तब-तब मैं अवतरित होता हूं।)
आपकी सच्चाई और सही कर्म आपको समय के साथ न्याय दिलाएंगे।
निष्कर्ष:
आपके साथ जो हो रहा है, वह कठिन है, लेकिन गीता कहती है कि यह समय केवल एक परीक्षा है। अपने धैर्य, कर्म, और ईश्वर में विश्वास बनाए रखें। दूसरों की नकारात्मकता और ग़लत हरकतों को अपने मन पर हावी न होने दें।
ध्यान रखें: जो लोग सत्य के मार्ग पर चलते हैं, उनका रास्ता कठिन हो सकता है, लेकिन उनकी विजय निश्चित होती है।
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शांत रहने और किसी भी स्थिति में प्रतिक्रिया न करने के लाभ पर भगवद गीता का दृष्टिकोण:
भगवद गीता में बताया गया है कि जीवन में शांति और धैर्य बनाए रखना, विशेष रूप से कठिन परिस्थितियों में, सबसे बड़ा गुण है। जो व्यक्ति शांत रहता है और बिना किसी अतिरेक या आवेश के स्थिति को संभालता है, वह स्वयं को बाहरी प्रभावों से मुक्त रख पाता है। यह स्थिति “स्थितप्रज्ञता” कहलाती है।
1. शांति बनाए रखने से मन की स्थिरता
गीता के अध्याय 2, श्लोक 70 में कहा गया है:
“आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं
समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत्।
तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे
स शान्तिमाप्नोति न कामकामी।।”
इसका अर्थ है कि जैसे एक स्थिर और अचल समुद्र में नदियों का जल समाहित हो जाता है, वैसे ही जो व्यक्ति अपने मन को शांत और स्थिर रखता है, वह सभी इच्छाओं और परेशानियों को अपने भीतर समाहित कर लेता है और शांति प्राप्त करता है।
लाभ:
शांत मन से आप परिस्थितियों को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं।
अनावश्यक प्रतिक्रियाएं आपको और अधिक उलझन या संघर्ष से बचाती हैं।
2. क्रोध पर काबू और धैर्य का महत्व
अध्याय 2, श्लोक 63 में कहा गया है:
“क्रोधाद्भवति संमोहः, संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो, बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।”
इसका अर्थ है कि क्रोध से भ्रम उत्पन्न होता है, भ्रम से स्मृति (समझदारी) नष्ट होती है, स्मृति के नष्ट होने से बुद्धि का विनाश होता है, और बुद्धि के नष्ट होने से व्यक्ति का पतन होता है।
लाभ:
शांत रहकर आप क्रोध और उसके दुष्परिणामों से बच सकते हैं।
धैर्य आपको मानसिक रूप से मजबूत बनाता है और सही निर्णय लेने में मदद करता है।
3. शांति में शक्ति है
अध्याय 12, श्लोक 15 में कहा गया है:
“यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च यः।
हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो यः स च मे प्रियः।।”
इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति दूसरों को उद्विग्न (परेशान) नहीं करता और जो स्वयं भी किसी से परेशान नहीं होता, जो हर्ष (खुशी), अमर्ष (ईर्ष्या), भय और चिंता से मुक्त रहता है, वह व्यक्ति मुझे प्रिय है।
लाभ:
शांति से आप अपने आस-पास के लोगों के लिए प्रेरणा बन सकते हैं।
दूसरों की नकारात्मकता आपको प्रभावित नहीं कर पाती।
4. स्थितप्रज्ञ बनने का आदर्श
गीता के अध्याय 2, श्लोक 55 में “स्थितप्रज्ञ” का वर्णन किया गया है:
“प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान्।
आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते।।”
इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति अपने मन के सभी सांसारिक इच्छाओं को त्याग देता है और केवल आत्मा में संतोष पाता है, वही स्थितप्रज्ञ कहलाता है।
लाभ:
शांत रहकर आप स्थितप्रज्ञ (आध्यात्मिक रूप से स्थिर) बन सकते हैं।
ऐसी अवस्था में बाहरी घटनाएं आपको विचलित नहीं कर सकतीं।
5. संयमित प्रतिक्रिया से नकारात्मकता से बचाव
गीता सिखाती है कि प्रतिक्रिया देने के बजाय, विचारशील बनें।
अध्याय 6, श्लोक 5:
“उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।।”
इसका अर्थ है कि व्यक्ति को स्वयं अपना उद्धार करना चाहिए और स्वयं को गिरने नहीं देना चाहिए। व्यक्ति स्वयं ही अपना मित्र है और स्वयं ही अपना शत्रु।
लाभ:
शांत रहकर आप अपनी ऊर्जा और मानसिक शक्ति बचाते हैं।
बिना प्रतिक्रिया के, आप दूसरों की नकारात्मकता से ऊपर उठ सकते हैं।
निष्कर्ष:
शांत रहकर और प्रतिक्रिया न देकर आप जीवन के बड़े संघर्षों में भी विजयी हो सकते हैं। गीता हमें सिखाती है कि शांति और धैर्य से हर समस्या का समाधान होता है। शांत मन और स्थिरता से आप अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित कर पाते हैं और दूसरों की नकारात्मकता या उकसावे में फंसने से बचते हैं।
याद रखें: शांति आपकी सबसे बड़ी ताकत है, और जो इसे अपनाता है, वह स्वयं को और संसार को जीत सकता है।
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